थोड़ी देर
तु ही है जो कारवाँ मे बह गया
ख़ानाबदोश ही सही ठहरता थोड़ी देर
नाराज़गी ही सही पालता थोड़ी देर
वो ग़ुबार अंगार का सहता थोड़ी देर
हर दिखावे से उठकर मन से पूछता थोड़ी देर
तु ही है जिसे निभाने थे सब से रिश्ते
अजनबी ही सही मुड़ के देखता थोड़ी देर
‘जल्दी मे था’ तो क्या रुकता थोड़ी देर
वो भीड़ मे गुम था तो क्या ढूँढता थोड़ी देर
हर छलावे से उठकर मन से पूछता थोड़ी देर
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