तेरा आना
जब से खुद को सीमित किया
तुझे छोड़कर सब से बाहर हुआ
अतीत के कुछ पन्ने फिर खुले
राह से भटकी क़लम फिर दौड़ पड़ी
तेरा असर यूँ तो मन को एकाकी कर गया
नेपथ्य के सारे चित्र फिर रंग गया
खोये से इतिहास मे फिर जीने लगा हूँ
ज़िन्दगी फिर सही राह पर चल निकली
जानता हूँ तेरा जाना फिर सब दोहरायेगा
कभी आसूं तो कभी परेशानी दे जायेगा
तु साथ था ही कब पर जानने लगा हूँ
तेरी नाराजगीयों से फिर सासें चल निकली
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