झकझोर गया
वो हवा के झोकों में
गैहू का लहरना
वो बरसाती 'गदेरों' के शोर में
पहाड़ का बोलना
और मन को झकझोर गया
वो भीड़ में तेरा गुमशुम रहना
वो नए घोसलों में चिड़िया के
बच्चो का चहचहाना
वो बसंत की थाप में
नई कोपल खिल जाना
और मन को झकझोर गया
वो चुपचाप तेरा मुस्कुरा जाना
वो पतझड़ में पत्तो का पेड़ का
साथ छोड़ जाना
वो बरसाती गदेरों का फिर सुख जाना
उन घोसलें के पंछियों का फिर उड़ जाना
और मन को झकझोर गया
तेरा यूँ चुपचाप निकल जाना ....
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