विश्वास
सूरज है साक्षी जिसका
ऋतुओं मे जो फला-बढ़ा है
उंचें पहाड़ों सा धैर्य लिए
वो विश्वास कहीं कम ना हो जायें
सींचा है जिसको एक बीज सा
पाला है जिसको दाना चुगकर
अब पीपल सा रुप लिए
वो विश्वास कहीं कम ना हो जायें
झरने जिसकी छवि लिए
झीलों सा विस्तृत है वो
नदियों सा प्रवाहित रहा जो
वो विश्वास कहीं कम ना हो जायें
तरुवेला पर कलियों जैसा खिला
साखों पर बेलों सा चिपटा
तुझको मुझको बाँधे है जो
वो विश्वास कहीं कम ना हो जायें
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