हार मे भी जीत है
इस हार मे भी एक जीत है
जब सम्मान का अपमान हो
जब तृष्णा मे बेस्वादी हो
जब मनों मे दूरियाँ हो
क़दमों मे जालें हो और पंख फड़फड़ाते हों
इस हार मे भी एक जीत है
जब कारवाँ वीरान हो
जब दिशायें यूँ ख़ामोश हो
और दोस्ती मे दिवार हो
नज़रों मे नाराज़गी हों और मन में स्नेह हो
इस हार मे भी एक जीत है
उजालों से पहले रात हो
सूरज अपना न हो चंदा न हो
क़लम की साथ देता बाज़ीगरी न हो
जब सोच कर कहना पड़े यूं सीमाओं मे लिखना पड़े
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