मौजूदगी
साखों के पर्ण भी तो गिरते हैं
झरनों के स्रोत भी तो सूखते हैं
पहाड़ की प्रलय देखी हैं मैंने
पर विश्वास को मरते नहीं देखा
बिखरता हैं नैपथ्य में बहुत कुछ
सँवरते हैं कारवाओं के बाजार भी
जानता हूँ, अपने ही तो रूठते हैं
पर सच्चे रिश्तो को मरते नहीं देखा
चुप हैं जो वो बहुत कुछ कह जाता हैं
असीम शांति में भी तूफ़ान बढ़ा जाता हैं
जानता हूँ अपनेपन की परवाह
दूरियों से आंकी नहीं जाती
Comments
Post a Comment