तु और मैं
तुझमें और मुझमे बस फ़र्क़ है इतना
कभी तुने जताया नही मैंने बताया नही
फासलों मे रहे सदा
कभी तुने पढ़ा नही मैंने पढ़ाया नही
कोई तो था ज़हर की खेती करता यहाँ
कोई तो था आशंका के बीज बोता यहाँ
यूँ तो अजनबी ही रहे सदा
कभी तु पास आया नही मै दूर गया नही
यूँ तो हर आरोप के बाद भी सम्मान रहा
हर अविश्वास के भी विश्वास रहा
यूँ तो दुश्मन बहुत था जहां
धोखा तुने भी सिखा नही मैंने भी किया नही
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