ज़िन्दगी बची है
फिर बात होगी फिर रार होगी
युही कभी फिर मुलाक़ात होगी
यु बिछड़ने का ग़म क्यों करूँ
ज़िन्दगी कुछ और बची है अभी
फिर तुझसे शिकायतें होंगीं
यूहीं कभी किसी मोड़ पर बात होगी
सोचूगां फ़ुरसत मे कभी नाराज़गी
ज़िन्दगी कुछ और बची है अभी
फिर सुनेपन की वो महफ़िलें ख़ाली होंगीं
यूँही कभी भीड़ मे विरान ज़िन्दगी होगी
हो न सकीं बाते बाटने वाली, ग़म नही
ज़िन्दगी कुछ और बची है अभी
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