निशाँ मिटते नही
तु सब पाले बदल भी ले
तब भी स्नेह भूलाया कहाँ जायेगा
अविस्मृतियों के चिन्हों को मैंने
पत्थर से मन पर उकेरा है
मन धूमिल हो भी जाय
तब भी यादों को कौन मार पायेगा
बर्फ़ीले रेगिस्तान मे भी मैंने
आस के अँकुर को पनपने देखा है
मान लूँ सब कुछ भुला भी दिया जाय
तब भी घावों के निशाँ मिट न पायेंगें
अनन्त फैले आकाश मे भी मैंने
ध्रुव तारे को चमकते देखा है
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