पहाड हूँ
पहाड हूँ हर बार मिलूँगा वहीं
टूटा हूँ झुका हूँ फिसला हूँ कई बार
तु नदी है बह चल तेरी चाल है
फिर शायद न हो मिलना कभी
पहाड हूँ हर बार मिलूँगा वहीं
सामना किया है झेला है हर झंझावत को
तु स्वतन्त्र पंछी है उड़ना है तुझे
फिर शायद लौट के आना न होगा कभी
पहाड हूँ हर बार मिलूँगा वहीं
सराय बनकर सहारा सा दिया है सभीको
कभी मुड़कर देखेगा तो मिलूँगा वहीं
जहाँ से तु छोड़कर गया था कभी
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