स्नेह का प्रतिरूप
वो तेरा सर हिलाना
तेरे मेरे सम्मानों का रिश्ता है
एक अपनापन है
शायद आज भी
जो बयां न हो पाया
तु स्नेह का वो प्रतिरूप है
यूँ तो तेरे पास होने न होने से
अब खास फ़र्क़ नही पड़ता
दोनों ही हालात
मन की उदासी बढ़ा जाते है
जो लिख न पाया कभी
तु स्नेह का वो प्रतिरूप है
यूँ तो नज़दीकियाँ दूरियाँ न थी
तु मन मे समाहित है हमेशा
तेरी सच्चाई भुलना आसां नही
नही वो दूरियाँ कुछ भुला पायेंगी
जो जता न पाया कभी
तु स्नेह का वो प्रतिरूप है
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