परेशान ‘मन’
तु जो कभी ख़ामोश है
तु जो कभी उखड़ा सा है
ये कसक है रिश्तों की
या ‘मन’ यूँ ही उद्विग्न है
तु ख़्यालों मे खोया सा है
तु मलालों मे जीता सा है
ये नाराज़गी है स्नेह की
या ‘मन’ यूँ ही निराश है
तु एकाकी सा हो चला
तु भावो को छुपाता सा चला
ये दूरियाें का कशिश है तुझे
या ‘मन’ यूँ ही परेशान है ...
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