जीवन और तु
यूँ पहाड पर सर्दियों की सुबह
धूप आने का इन्तज़ार किया है
ग्रीष्म मे जाती किरणों के साथ
अनगिनत अठखेलियाँ का वादा किया है
कभी बालू के मैदान मे दरिया किनारे
चुपचाप ताज का दीदार किया है
घनघोर रातों मे जुगनु के साथ
जीवन की रोशनी को तलाश किया है
सेहरा की रेत पर मृगतृष्णा सी खोज
बे-आश बीजों को ज़मींदोज़ किया है
लम्बे रास्तों मे चहुँओर भटकने के साथ
मंज़िलों के आग़ाज़ों को अहसास किया है
तु इसी दौड़ का अनकहा सा स्पर्श है
इन्तज़ारी मे चुपचाप पनपता बीज है
तमन्ना के ताज को पाने की लालसा किसे
तु ख़ुशियों मे साथ देता कोई अपना सा लगा है
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