एक सरहद तेरी है
तु सामने था कभी कुछ कहा नही
मन के सम्मान को कभी जताया नही
तु जानता तो सब कुछ है
पर किसी ने कभी सीमाओं को पार किया नही
रिश्ते सम्मानों के वो क्या, प्रकट हो हरदम
गुमनामी के आँसू कभी किसी ने दिखाये नही
तु जानता है मन का रोना
ये और है सरहदों की बारूद मे कूदने से डरा नही
वो दूर खड़े रहकर तेरे आहत मन को पहचाना है
संवान्तना के दो शब्द कभी किसी ने लिखे नही
तु जानता है कोरे काग़ज़ का पढ़ा
ये और है मंज़िलों की एक सरहद तेरी है एक मेरी है
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