भावनाऐं मेरी

तुझसे नाराज़गी की तमाम कोशिशों को 
हराती गयी मन की स्नेहता मेरी 
तेरे अपुष्ट आचरणों और एकाकी विचारों 
पर हावी रहीं वो भावनाऐं मेरी 

तुम दूरियों का सीला देकर सोचते हो 
अपनापन गुम सा जायेगा मेरा
कहा था ना निभानें की कोई शर्त तुझतक नही
निर्वाह अविरल संजोयेंगीं भावनाऐं मेरी

रिश्ता सम्मानों का है नफ़रत न पाल पाया
मुझसे मुझे ही दूर कर गयी नाराज़गी मेरी 
कई मानक खुद ही तय किये थे निभाने को
वो निभाती रहेगी भावनायें मेरी ....

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