कुछ तो नाता है

यूँही मिट्टी की कसक नही आती
वो सौंधी सी ख़ुशबू नही आती 
कुछ तो होगा अपनो सा नाता 
यूँही बुज़ुर्गों की दुआएँ नही मिलती 

यूँही हर कोई हिमालय नही होता 
वो अपनो सा क़रीब नही होता 
कुछ तो पवित्रता होगी सोच मे 
यूँही कोई सम्मान का हक़दार नही होता 

यूँही किसी पर विश्वास इतना नही होता 
वो दोस्त न होकर भी इतने क़रीब न होता 
कुछ तो नाता होगा भावनाओं का 
यूँही तेरा सब कोई मेरा अपना सा न होता 


Comments

Popular posts from this blog

कहाँ अपना मेल प्रिये

दगडू नी रेन्दु सदानी

कल्पना की वास्तविकता