सबसे पास

धरती पनघट साँझ सबेरे 
मन मन्दिर आँगन मे मेरे 
तु रचा बसा संसार है 
तु ही ‘मन’ की आख़री पुकार रहा है 

भ्रम सच्चाई सादगी तर्पण 
मन समर्पण ख़्यालों मे मेरे
तु छोटी सी मूरत ही रहा है 
तु ही ‘मन’ की अनसुनी आवाज़ रहा है 

सत्य झूठ धोखा अपनापन 
ख़ामोश रहै हर जज़्बात मे मेरे 
तु फलता विश्वास रहा है
तु ही ‘मन’ के सदैव साथ चला है 

दूरियाँ नज़दीकियाँ होना न होना
अदृश्य रहै हर ख़्वाब मे मेरे 
तु पहाड़ों सा अपना लगा है 
तु ही ‘मन’ के सबसे पास रहा है 

Comments

Popular posts from this blog

कहाँ अपना मेल प्रिये

दगडू नी रेन्दु सदानी

कल्पना की वास्तविकता