अवशेष
जब भी आँखें मूँदीं शांत चित
ख़्याल नमन इरादों की
हलचल कर तु चला आया है
इस यादों के खण्डहर मन में
जब भी मन ने आस लगायी
वन जंगल पहाड़ों की
चुपके से तु चला आया है
इस विरान शहर से मन में
जब भी ज्ञान चक्षु ने क़लम उठायी
कविता गीत रचाने की
संगीत बनकर चला आया है
इक ख़ामोश धुन बनकर मन मे
सार इस जीवन का लिखना चाहा
खोये पाये लेखे मे
इतिहास बनकर चला आया तु
बहीखाते के पुराने अवशेषों में
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