पास क्यों
उनके बीच जो विष का
कारोबार करते रहे
मेरे स्नेह के बीज
तुने जाया न होने दिये
कितनी कोशिशें रही
निस्त-ए-नाबूत की
मेरी सुधी की फ़सल
तुने जलके बचाये रखी
हजारों लांछन होगें
कि गिर जाऊ नज़रों से
ये छवि कच्चे धागों पर
फिर भी तुने गिरने नही दी
वजह यहीं अलग करती है
तुझे सबसे पास रखती है
गहराइयों मे जो एक बार उतरी
‘मन’ ने फिर विमुक्त होने नही दी
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