तुम याद आये
यूँ जब पहाड भी विरान लगें
जब फूल मुस्कुराते न लगें
मिट्टी की सोंधी महक ग़ायब हो
समझा कि तुम याद आये
घर से निकले हों शुकुं पाने को
हँसते हों जब ग़म छुपाने को
भागती सी हर आशा लगे
समझा कि तुम याद आये
घण्टों किताब का बहाना लिये
पढ़ने कि ज़िद मे खुद को भूलते हुए
जब पुरुस्वार्थ पर संकोच भारी लगे
समझा कि तुम याद आये
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