गाता लिखता रहूँगा
सपनों के फ़लसफ़े
और यादों की हक़ीक़त
अमरत्व पा भी जाय तो क्या
गुज़रे कारवाँ के फसाने
गाते और लिखता रहूँगा
चेहरों का बदलना
और वादों की औपचारिकता
निशाँ में बाक़ी भी न रहे तो क्या
गुज़रे वक़्त की नांदानियां
गाते और लिखता रहूँगा
दूर कही बादलों से
आस की हर किरण छुप भी जाय
संकटों की लहरें आ भी जाय तो क्या
गुज़रे पहलुओं के अफ़साने
गाते और लिखता रहूँगा
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