बंदगी कह जाना
जब स्पर्श हो वतन की मिट्टी का
जब अपनों से गले मिलना
चुपचाप भीगीं पलकों से
मेरा भी सलाम कह जाना
शहर की आब-ओ-हवा में
जब घुल जाय मन
चुपके से हाथ लहराकर
मेरा भी स्पर्श दे जाना
हमवतनो के बीच भीड़ में
जब कोई आवाज़ देता सा लगे
चुपचाप मुड़के देखकर
मेरी भी बंदगी ले जाना
कभी अकेले घर के कोनों से
ख़ामोशी को तोड़ती हुई
खन्न की कोई आवाज़ आये
मेरे सम्मान की छोंक समझ जाना ....
Comments
Post a Comment