मौसम की करवट
अब तो मौसम ने करवट बदल दी होगी
भूरी धरती पर हरी चादर बिछ गयी होगी
रंग उके रे होंगे फूलो ने
खगों के कलरव ने फ़िज़ा बदल दी होगी.
पहाड़ो पर बिछी बर्फ पिघलने लगी होगी
समवेत सुरों में नदियां वादियों में गूंजने लगी होंगी
इंद्रधनुष जुड़ गया होगा आसमां से
झरनों की तालो ने फ़िज़ा बदल दी होगी .
सरसों की पितिका से तीतर ने ताल सुनाई होगी
खिली कपोलो पर तितली डगमगाई होगी
नयी साखों पर बन गए होंगे हजारों घोसले
नवागंतुकों के शोर ने फ़िज़ा बदल दी होगी
फागुन के मल्हार में फूलों ने कविता गायी होगी
बसंती चोला ओढ़े जब धरती नाची होगी
माँ तुने ढूंढा होगा तब मुझको
फिर हिचकी से अपनी,
अपनेआप समझ गयी होगी
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