रच डाली
अपनो के सम्मान के लिये
चाहे अनचाहे स्नेह के लिये
‘सच्चाई’ के समर्पण के लिए
आज मन की बंदगी रच डाली
उन गुदगुदाती सी यादों के लिए
अकेली रुलाती शामों के लिए
दिवार पर चिपटे अवशेषों के लिए
आज मन की बन्दगी रच डाली
किसी के ठिठकते क़दमों के लिए
शिकवे शिकायत की बातों के लिये
मन के अपनेपन और दोस्ती के लिये
आज मन की बन्दगी रच डाली
बीते बरषों की मीठी यादों के लिए
मेरे पहाड और गौं-ग्वठ्यार के लिये
कुछ पाने खोने और संघर्ष के लिये
आज मन की बन्दगी रच डाली .....
Comments
Post a Comment