हल्का हूं
तेरे बीते सालों की सौग़ातों से
वो मुड़कर दो पल रुकने से
तेरी अनकहीं बातों को सुनने से
मन हल्का हो जाता है
यूँ किताबों मे तेरा चेहरा आने से
घूरकर मुझे ‘कुछ भी’ कहने से
तेरे स्नेह के चार शब्द पढ़ने से
मन हल्का हो जाता है
तेरे नाराज़ होने की यादों से
तुझे मनाने की नाकाम कोशिशों से
तेरे लोगों से छुपाते अपनेपन से
मन हल्का हो जाता है
Comments
Post a Comment