जद्दोजहद
कभी तारों का ज़हान था
अब यादों की दुनियाँ है
मुश्किल संघर्ष है ये द्वद
यहाँ सब निष्कृय है अब
ये नही कि लड़ न सकूँ
हालात ही तो हैं सामनें
फिर ये निष्कर्ष तो तय था
क्यों यहाँ अदृश्य है सब
जो हारा वो जीता नही
जो जीता वो कहाँ सिकन्दर
फिर ये जद्दोजहद क्यों थी
सब ख़ाली हैं यहाँ अब
आश्रयों की आशाये कब थी
कब एकाकी स्नेह पूरक न था
ये झोंपड़ियों के निशाँ नहीं थे
सब खण्डहर सा है यहाँ अब
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