रंगो की ताबिर
विश्वासों की राह में हमनें
जब जब ग़ैरों की बात सुनी
खुद से खुद को दूर ही पाया
जब जब तुमसे बात ठनी
विराने में जब भी हमनें
‘मनसे’ मन की बात कही
तुझको अन्तरमन में पाया
जब जब सच से बात हुई
सूनी रातों में जब हमनें
ख़ाली छत से बात कहीं
तुझपर रच डालें गीतों ने
क़लम उठाकर बात कहीं
ख़ाली होते मन मे हमनें
रंगों की ताबिर रची
नज़र गढ़ाकर पाया हमने
बुत से मन में आस जगी
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