मन की वैदेही
वो मन की वैदेही है
जो जली नही है किसी आग मे
प्रवाह प्रचण्ड मे बही नही है
थमी नही है किसी राह में
वो मन की वैदेही है
जो नही चली है संग राह में
प्रतिबिम्ब मन की दूर नही है
चमक नही है फीकी मन में
वो मन की वैदेही है
जो नही मिली है कांधा जोते
अस्थि कलश सी तत्व नही है
भूली नही है किसी मकां मे
वो मन की वैदेही है
जो सींची नही है सीना चीरे
खोद ज़मीन जो उपजी नही है
पनपी है जो अँकुर स्नेह बीज मे
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