मिलती बिछडती
हम नदियाँ के दो छोर
हम आदि अन्त के वासीन्दें
जुड़े रहे तत्व अवशेष से
हम अजनबी चाल मे फँसे परिन्दे
हम खिंचतान के दो छोर
हम अपने परायों की कड़ी
सम्मानों से जुदा नही हैं
हम दुविधा की जलती लड़ी
हम आस निराश के दो पहलू
हम पत्थर पर कोई चोट बड़ी
स्नेह अपराजिता से हार न मानी
हम मिलती बिछडती एक पाती
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