क्या क्यों
कभी सोचता हूँ कि क्या लिखूँ
कभी सोचता हूँ कि क्यों लिखूँ
वो अनपढ़ ही रहा
न स्नेह पढ़ पाया न भावनाऐं लिख पाया
कभी सोचता हूँ कि क्या जताऊँ
कभी सोचता हूँ कि क्यों जताऊँ
वो भावहीन ही रहा
न अपनापन रख पाया न नाराज़गी जता पाया
कभी सोचता हूँ कि क्या बताऊँ
कभी सोचता हूँ कि क्यों बताऊँ
जानता वो सब है
न नज़रों मे रख पाया न नज़रों से गिरा पाया
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