थोडा लाज़मी है
ये शप्तपती की राह नही
ना प्रेम प्रसंग की रंचना है
डगर स्नेह के सम्मान की है
थोडा विश्वास लाज़मी है
दूर रहे वो पास रहे हों
विचारों मे अभिभूत रहे
रिश्ते जहाँ मनों के हों
थोडा अपनापन लाज़मी है
झूठ सच की बुनियादों पर
मन की एक परिपाटी है
अपना सा जो लगा राह में
हर सम्मान का अधिकारी है
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