किताब
सम्भाला है अपने से ज़्यादा
जीवन की हर किताब को
यादों की वो मधुर स्मृति
मन मे घर बनाती रही
जीवन की तरह रहे
पलटे कई बार
पर बिनपढें ही रहें
तु भी उन्हीं पन्नों मे
खोयी कोई कहानी रही
झकझोरती गई कई बार
पास रहने से कतराती रही
जिया है अहसासों को
हर उस किरदार में
मूक बनकर ही रहा हर बार
और यूँ हारता रहा
Comments
Post a Comment