जो एक बार
यूँ न हुआ कभी कि
दोस्तों में दुश्मन मिले हों
वो लोग और ही थे,
जो एक बार पास लगें
मन से दूर हो न सके
यूँ तो नाराज़गीयां कभी
दोनों तरफ भी रहीं होंगीं
वो फसानें और ही थे,
जो एक बार छेड़े गये
मन से कभी भूलाये न गये
यूँ न हर बार यादों की
सुनहरी रवांनीयां रही होगी
वो पल कुछ और ही थे,
जो छूकर गयी एक बार
मन के रुबरू महक बन गये
Comments
Post a Comment