प्रेम के गीत
नदियों नालों झरनो से
जब आवाज़ सुनायी देती है
यादों की विरान स्मृतियों में
कोई मनन अपना सा लगता है
गुमशुम नज़रें जब स्नेह रचती है
मैं मधुरिम प्रेम के गीत लिखता हूँ
खेत पहाड़ों खलिहानों से
जब तीतर तान लगा बैठा हैं
सूनसान पड़े उन ख़ाली राहों में
वहम की कोई कदमचाप सुनी है
घूरती मुस्कुराती वो नज़र लगी हो
मै मधुरिम प्रेम के गीत लिखता हूँ
मन्दिर मस्जिद गुरुद्वारों से
जब घण्टे घड़ियालों की नाद बजी है
तपते पत्थर के कंच कणों मे
आशा की कोई चमक उठी हो
सच्चाई से सादगी वाली आश लगी हो
मै मधुरिम प्रेम के गीत रचता हूँ
Comments
Post a Comment