यादों मे पलता
फैली है उसकी यादें इस क़दर
मेरी कविता की किताबों पर
यूँ तो साथ चलती हैं, मिलती नही
कुछ पन्नों का फ़ासला हमेशा रहा
यादें तो हैं पर शिकायतें नही कोई
मसरुफियत में हर कोई रहता है मगर
मनों मे साथ चलता है एकाकी जीवन
यूँ कुछ सासों का फ़ासला हमेशा रहा
वो दौर और था जब सजदे ना-गवारां रहे
वैसे वो खुदा का बन्दा जुदा भी न था
दूरियाँ तय कर ली हैं मंज़िलों ने बहुत
यादों मे पलता एक फसाना हमेशा रहा
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