गुमनाम कहानी
कभी सोचा है बरखा को
कि धरती पर गिर रहे आंसू
छुई जो औंस आखें नम सी
उतर आयी वो एक तस्वीर सी
जुबां खामोश करने को
कि फिर एक सर्द हवा आयी
उड़ाकर ले गई सब आंधी
पतझड़ में जो वो बनके याद आयी
सिमटती यादों ने खोया है
वो 'मन' की सादगी में सच्चाई
कलम बनकर वो जब लिख बैठा
कहानी गुमनामियों की रच डाली
कि धरती पर गिर रहे आंसू
छुई जो औंस आखें नम सी
उतर आयी वो एक तस्वीर सी
जुबां खामोश करने को
कि फिर एक सर्द हवा आयी
उड़ाकर ले गई सब आंधी
पतझड़ में जो वो बनके याद आयी
सिमटती यादों ने खोया है
वो 'मन' की सादगी में सच्चाई
कलम बनकर वो जब लिख बैठा
कहानी गुमनामियों की रच डाली
Comments
Post a Comment