चुपके कुछ कहा नही
यूँ तो भूलने के कगार पर
वो रास्ते जिनपे चला नही
वो डगर रही खामोश ही
जो साथ थी बड़ी नहीं
यूँ तो दूरियों का गिला रहा
वो दरिया पास आया नही
वो ग़ुबार जो उठता ही रहा
कभी मन की सीमा में बहा नही
वो सच्चाई का यूँ आलम रहा
कभी झूठ साथ चला नही
यूँ तो ठौर पर ही रहा मगर
कभी चुप के कुछ कहा नही.
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