प्रतीर पर रहा
ग़ैर ही थे ग़ैर ही रहे
बहती नयार का
तय था रास्ता भी
प्रतीर पर छपछपाना
आरज़ू नही स्वभाव रहा
साहिल उम्मीदों की रही न रही
मनों के तार बँधते रहे
कहने को बहुत था
मनो के मूक संदेश
चुपचाप पहुँचते रहे
शुरु कोई कर न सका
ख़त्म सब हो न सका
जताने को बहुत था
एकाकी मनों के अहसास
गुमनामी मे बढ़ते रहे
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