तेरे प्रीत की
शाम की लौं पे दस्तक हुई थी कभी
टूटे द्वारों पे आहट हुई थी कभी
गीत बज्मों से निकली किसी पीड पर
मैंने रच दी कहानी तेरे प्रीत की
खेत की मेंढ पर सिसकियों सी कभी
अधखुली खिड़कियों पे तांकती सी कोई
झरने नदियों से निकली किसी आह पर
मैंने रच दी कहानी तेरे प्रीत की
राहें तकती कोई राहगर सी कभी
साख के ओट पर सुखती सी कोई
टहनी-पत्तों से निकली किसी ओस पर
मैंने रच दी कहानी तेरे प्रीत की
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