सदा पूजते ही रहे
पाना अगर प्रीत की रीत होती
तो खोना यूँ स्मृतियों में न होता
ज्ञान के चक्षु खुले हो ना-खुले
पर प्रीत की ठीस यूँ सच्ची न होती
राधा बनी वो रुक्मणि ना हुई
अर्थ प्रेम के भिन्न ना होते
रिश्तो की देहरी पे ठहरी हो, नहीं
यूँ छाप मन पे अनमित ही रही
ध्यान लगा के पा ना सके जो
वो जोगी, महंत ना संत हुए
वो जो ध्यान गवाएं रहे जग में
वह प्रेमी सदा पूजते ही रहे
तो खोना यूँ स्मृतियों में न होता
ज्ञान के चक्षु खुले हो ना-खुले
पर प्रीत की ठीस यूँ सच्ची न होती
राधा बनी वो रुक्मणि ना हुई
अर्थ प्रेम के भिन्न ना होते
रिश्तो की देहरी पे ठहरी हो, नहीं
यूँ छाप मन पे अनमित ही रही
ध्यान लगा के पा ना सके जो
वो जोगी, महंत ना संत हुए
वो जो ध्यान गवाएं रहे जग में
वह प्रेमी सदा पूजते ही रहे
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