पढ न पाया
यादों की देहरी पर मन
फिर कुछ लिख न पाया
मेरे चार शब्दों का जबाबतेरे दो शब्दों से आगे बढ़ न पाया
सीमाओं के संसार में मन
घेर-बाढ़ लाँघ न पाया
मेरे चीख़ते विचारों का जबाब
तेरे खामोश होंठों पर ढूँढ न पाया
ठहरकर मुड़ जाता है मन
पदचापों की आवाज़ भूल न पाया
प्रश्न अनेक जो अनुत्तरित ही रहे
उन आँसुओं में जबाब पढ न पाया
Comments
Post a Comment