समुन्दर और पहाड
वो तेरे समुन्दर के शाम की धूप
जो मेरे पहाड की सुबह से मिल जाये
कुतुहल की गुज़ारिश हों
वो शहर अपना हो जायें
वो तेरे रेत की मलंगं शामें
मेरे पहाड की गुनगुनी सुबह हो जायें
विश्वासों की जो बारिश हो
मन फिर बच्चा हो जायें
वो तेरे समुन्दर की खिलखिलाती हँसीं
जो मेरे पहाड की लज्जाई सुबह हो जायें
वो अपनापन फिर से हो कहीं
फिर वो गाँव बस जायें
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