अँकुर
वो अभी और भी गुमशुम होगा,
मैं शायद और भी याद आऊंगा
शोर से भरे शहर में
कोई कोना फिर भी खामोश होगा
वो अभी और दूरियों में होगा
मैं शायद फिर भी पास ही रहूँगा
खामोश किसी राह पर
कोई दर्द फिर भी कराह रहा होगा
वो अभी भी औरों के असर में रहेगा
मैं शायद फिर भी अकेलेपन में रहूँगा
सुनसान किसी भावना में
कोई अँकुर फिर भी प्रस्फुटित होगा
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