मैं
बिन रिश्ते और सम्मान से
दो कदम साथ चलना चाहता हूँ
जी कर भी हार जाऊँ
वो अभिशाप होना चाहता हूँ
सूने पड़े किसी मन्दिर में
टूटा पड़ा वो घंटा होना चाहता हूँ
वन देवता के टूटे महल का
वो खंडित पत्थर होना चाहता हूँ
हिमालय की तलहटी में खोती
वो कटती पिटती डगरिया होना चाहता हूँ
निशाँ बचे हो जिसके बहने के
वो सूखी नदिया होना चाहता हूँ
स्नेह की आधी अधूरी ही सही
वो अधखुली किताब होना चाहता हूँ
खो गयी हो दुनिया की भीड़ में
उस कुंची की एक चाबी होना चाहता हूँ
हाँ मैं मैं होना चाहता हूँ
मै यूँही तुझमें खोना चाहता हूँ
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