जो भी हैं
तुने भी कभी चुपके से
नीड़ को बनते देखा होगा
कभी सहमी सी नज़रों में
कुछ ख़्वाब उजड़ते देखा होगा
सपनों की ताबिरों का
कोई महल उजड़ते देखा होगा
तुमने भी कभी मुझ जैसा
तुझको खोते देखा होगा
हम जो भी हैं हम जो भी थे
सम्मानों से साथ रहे
कभी पास रहे कभी दूर लगे
कभी मर्यादित से बच निकले
मीलों के उन पत्थरों सा
खड़े रहे यूँ तांकतें रहे
जो चला गया वो लौटा क्या
जो ठहरा वो भूला क्या ?
Comments
Post a Comment