खोयी थाती
तु भूली सी राह शहर की
मन पत्तों से ढकी डगर है
फिसलन खाती टेढ़ी मेढ़ी
मैं पहाड की खोती थाती
तु सोयी सी कुमुद दलों की
आस तोड़ती फूल खड़ी है
काँटें चुभती सूखी कडकडी
मैं खड़ी सी रिगाल लंगलंगाती
तु काग़ज़ पर स्नेह की स्याही
सुन्दर सपन लिखी कहानी
कोरे काग़ज़ पर बिखरी सी
मै रेतों की छिटकी बाती
तु रंगमंचों की परदादारी
लटके झूमर में फैली चाँदनी
रातों के इन घुप्प अंधेरों में
मैं आस की छत तांकती...
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