सीख
उड़ा तो कब का जा सकता था
पर पहाड जो धँसे रहे जड़ो में
समुन्दर की रेत में निशा बनाकर
मिटना भी नही सिखा
सोचा तो कुछ भी जा सकता था
पर मर्यादा रही गुमनाम रिश्ते की
सहेजकर मन मे रखा है जिन्हें
भूलाना भी नही सीखा
चाहो तो सीमायें लाँघ सकता था
पर हिमालय रहा है विश्वास यहाँ
नज़रों ने गहरा संभाला है जिसे
उतारना भी नही सीखा
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