सन्देश
तु समुन्दर मैं पहाड ही रहा
कोई बह चला कोई खडा रहा
कोई रेत पर पदचिह्न बनाता कोई दलदल में धँसा नीड़ रहा
तु लहरों में घूमता मैं रुका रहा
कोई भँवर में रहा कोई पार कर गया
कोई खुली हवा का झोंका रहा
कोई जहाज़ पर अटका पंक्षी रहा
तु खामोश रहा मैं बड़बड़ाता रहा
कोई सुन गया कोई सुनाता रहा
पहाड़ों से आवाज़ टकराकर आती है
खुला समुन्दर तेरा सन्देश लौटा ना सका
Comments
Post a Comment