तु जब गया
ये वो पड़ाव है जहाँ तु ठहरा नही
रुका तो हूँ पर नज़दीकियाँ नही
हँसती सी कोई बयार चल निकली
तेरे साथ यादों की ताजगी बह निकली
मेरे होने का अहसास हो ये तय है
तेरी तरह जाने पर दुख न हो कहीं
ये हक़ तुझतक रहें मर्यादा की सीमा में
यूं तेरे साथ मन की ख़ुमारी चल निकली
यूँ तो भटकती रही हैं ये ज़िन्दगी
और पाने के नाम पर खोया है सभी
जाने को तो तु भी गया पर
लाखों यादें समेटे है ज़िन्दगी
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