तु मुडा ही नही
दायरों मे कहीं जब भी आया कोई
मौन कहता गया सोच तुझ तक गयीं
बीच खूँटे में लटका रहा दरबदर
मन का विश्वास है फिर भी थमता नही
ग़ैरों बनकर कभी जब भी आवाज दी
मौन लिखता रहा याद तुझ तक गयीं
अंगुलियों के निशाँ यूँ मिटता रहा
दौर यादों का देखा तो थमता नही
खाली कोनों से किसने नज़र फैर दी
यूँ लगा पास से कोई गुज़रा सही
असर झुकती आँखों बढ़ता गया
दूर जब से गया तु मुडा ही नही
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